मूत्र निर्माण FORMATION OF URINE
यकृत कोशिकाओं में बने यूरिया को रुधिर द्वारा वृक्कों में ले जाया जाता है | यकृत से यूरिया युक्त रुधिर यकृत शिरा द्वारा पस्च महाशिरा में डाल दिया जाता है | पस्च महाशिरा से यूरिया युक्त रुधिर वृक्कों में पहुंचाता है | वृक्कों में यूरिया को रुधिर से पृथक किया जाता है | इसे मूत्र निर्माण कहते है मूत्र निर्माण क्रिया निम्न चरणों में संपन्न होती है -(1) परानिस्येन्दन
(2) वरणात्मक पुनरावशोषण
(2) स्त्रावण
(1 ) परनिस्यंदन या अल्ट्राफिल्ट्रेशन -वृक्क के बोमेन सम्पुट सूक्ष्म छलनी की भाँति कार्य करते है मनुष्य के केशिका गुच्छ में लगभग 50 समांतर केशिकाएँ पायी जाती है इसमें अभिवाहि धमनीका यूरिया युक्त रुधिर लाती है तथा अपवाहि धमनिका इससे रुधिर बाहर ले जाती है केशिका गुच्छ की दीवार में असंख्य छिद्र होते है जिनका व्यास लगभग ०.1 माइक्रो मीटर होता है इन छिद्रों में से प्लाज्मा में घुले पदार्त छनकर निकल सकते है | छिद्रित दीवार की पारगम्यता सामान्य रुधिर केशिकाओं की अपेक्षा 100 से 1000 गुना अधिक होती है केशिका गुच्छ में आने वाला रुधिर जितना तेजी से आता है , बाहर जाते समय उतनी तेजी से नहीं जा पाता है | इसी कारण एक स्वस्थ मनुष्य में केशिका गुच्छ में आने वाले रुधिर का रुधिर दाब 70 mm Hg होता है, जबकि केशिका गुच्छ से जाते समय रुधिर दाब 30 mm Hg होता है इसके फलस्वरूप केशिका गुच्छ के रुधिर से तरल प्लाज्मा व उतसर्जि पदार्थ बोमेन सम्पुटकी गुहा में पहुँच जाते है केशिका गुच्छ से छनकर बोमेन सम्पुट की गुहा में जाने वाले द्रव को ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेट कहते है | इसमें रुधिर के जल का 95 %भाग, एमिनो अम्ल, यूरिया, ग्लूकोस, यूरिक अम्ल,क्रिएटिन तथा लवण होते है बोमेन सम्पुट के निचे ग्रीवा का भीतरी अस्तर पक्षमाभी एपिथीलियम का बना होता है पक्षमाभो की गति से ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेट तेजी से नलिका में आगे बढ़ता है |
(2 ) वर्णात्मक पुनरावशोषण - ग्लोमेरुलर निस्येन्दन में रुधिर के जल का 95 % भाग छनकर आ जाता है परन्तु इसका लगभग o.8 % भाग ही मूत्र में परिवर्तित होकर बाहर निकलता है | शेष भाग का रुधिर में पुनः अवशोषित हो जाता है | लाभदायक पदार्थो को वृक्क नलिकाओं से पुनः रुधिर में पहुँचाना वरणात्मक अवशोषण कहलाता है | यह पुनः अवशोषण निम्नानुसार होता है -
१. समीपस्थ कुण्डलित नलिका में पुनरावशोषण -इन नलिकाओं द्वारा निस्येन्दन का लगभग 75 % भाग अवशोषित होकर परिनलिका केशिका जाल के रुधिर में पहुँचता है | जिसके फलस्वरूप ग्लूकोस, एमिनो अम्ल अकार्बनिक लवण, जैसे -फास्फेट, सल्फेट, सोडियम, कैल्सियम, पोटेशियम, आदि सक्रिय गमन द्वारा पुनः रुधिर में चले जाते है
२. हेनले के लूप में पुनरावशोषण -
(अ) अवरोही भुजा - लूप का यह भाग मेड्यूला में स्थित है जिस कारण यहाँ सोडियम आयन की अधिकता होती है अतः यहाँ जल का अधिक मात्रा में अवशोषण है तथा सोडियम, पोटेशियम, क्लोराइड ,आयनो का अवशोषण कम होता है |
(ब) आरोही भुजा का पतला खण्ड -यह जल के लिए अपारगम्य यूरिया के लिए अर्द्धपारगम्य तथा सोडियम एवं क्लोराइड के लिए पूर्ण पारगम्य होता है |
(स) आरोही भुजा का मोटा खण्ड - इस खंड की दीवार मोटी व जल और यूरिया लिए अपारगम्य होती है |
३.दूरस्थ कुण्डलित नलिका में पुनरावशोषण - इस भाग में सोडियम ायनो तथा क्लोराइड ायनो सक्रिय अभिगमन द्वारा अवशोषण होता है |
(3) स्त्रावण - कुछ हानिकारक पदार्थ, जैसे -वर्णक, कुछ ओषधियाँ, यूरिक अम्ल इत्यादि हानिकारक पदार्थ परानिस्येन्दन द्वारा नहीं छन पाते है हेनले के लूप तथा समीपस्थ एवं दूरस्थ कुंडलित नलिकाओं की उपकला कोशिकाएं इन अपशिष्ट पदार्थो को सक्रिय अभिगमन द्वारा वृक्क नलिकाओं गुहा में मुक्त करती है इस क्रिया कोण नलिकिये स्त्रावण कहते है संग्रह नलिका के अंतिम भाग में ग्लोमेरूलर निस्येदन मूत्र कहलाता है |
मूत्र -ग्लोमेरूलर निस्येन्दन का अवशेष जो पेल्विस में तथा वहाँ से मूत्रवाहिनी में पहुँचता है ,मूत्र होता है मूत्र में जल, लवण , यूरिया क्रिएटिन तथा यूरिक अम्ल होता है मूत्र का पीला रंग यूरोक्रोम के कारण होता है चाय , कॉफी , एल्कोहॉल ,आदि के प्रभाव से मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है
महत्वपूर्ण परिभाषाए -(रोग )
1 .डिसयूरिया -मूत्र त्यागते समय दर्द की अवस्था |
2 . ग्लाइकोसुरिया -मूत्र में शर्करा की उपस्थिति एवं उत्सर्जन ग्लाइकोसुरिया कहलाता है यह रोग इन्सुलिन हार्मोन कमी से होता है |
3 . पोलियूरिया -वृक्क नलिकाओं द्वारा पुनः अवशोषण में कमी आने से मूत्र के आयतन में के बढ़ने की अवस्था पोलियूरिया कहलाती है |
4 . सिस्टिटिस -मूत्राशय में सूजन आ जाने से यह रोग उतपन्न होता है |
5 . ओलिगोयूरिया -मूत्र की बहुत कम मात्रा के निर्माण यह रोग उतपन्न होता है |
6 . प्रोटीन्यूरिया -मूत्र में प्रोटीन की मात्रा का सामान्य से अधिक होना प्रोटीन्यूरिया कहते है |
7 . कीटोन्यूरिया -मूत्र में किटोनकाय जैसे एसिटिक अम्ल आदि की मात्रा का बढ़ना कीटोन्यूरिया कहलाता है
8 . हिमेटोयूरिया -मूत्र के साथ लाल रक्त कणिकाओं का निष्काशित होना हिमेटोयूरिया कहलाता है |
9 . हिमोग्लोबिन्यूरिया - मूत्र में हीमोग्लोबिन की उपस्थिति हिमोग्लोबिन्यूरिया कहलाती है |
10 . पाइयुरिया - मूत्र में मवाद कोशिकाओं का पाया जाना पाइयूरिया कहलाता है |
11 . पीलिया - मूत्र में पित्त वर्णको का अत्यधिक मात्रा जाना पीलिया कहलाता है
12 . यूरेमिया -जब रक्त में यूरिया मात्रा सामान्य मात्रा 10 -30 mg /100 ml से अधिक हो जाती है तो यह स्थिति यूरेमिया कहलाती है
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