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pteridophyta information in hindi 2020

टेरीडोफाइटा  -

=>टेरीडोफाइटा शब्द हैकल के द्वारा दिया गया | 


=>ऐसे पादप जिनमें पंख युक्त पर्ण उपस्थित होती है टेरीडोफाइट कहलाते है | 
सामान्य नाम -
=>अपुष्पीय संवहनीय पादप | 
=>फर्न | 
=>प्रथम संवहनी पादप या प्रथम रम्भीय पादप | 

=>टेरिडोलोजी -वनस्पति विज्ञानं की वह शाखा जिसमें टेरीडोफाइटा का अध्यन किया जाता है 

प्रमुख लक्षण -
=>टेरीडोफाइट स्थलीय पादप है जो मुख्य रूप से नम और छायादार आवाश में पाए जाते है | 
=>परन्तु कुछ टेरीडोफाइटा जलीय जैसे -एजोला , मार्सिलिया साल्विनिया ,आदि | 
=>इनका मुख्य पादप शरीर बीजाणुद बिद होता है | 
=>जो जड़, तना , पत्तियों में विभक्त होता है यह सामान्यतः एक वर्षीय या बहुवर्षीय शाख , झाड़ी या कभी -कभी वृक्ष नुमा भी होते है 
=>इनमे सामान्यतः अपस्थानिक मूल पायी जाती है जो जल व खनिज लवण के अवशोषण का कार्य करती है 

=>पत्तियों के आधार पर टेरीडोफाइटा दो प्रकार के होते है 
1 . लघुपर्णि टेरीडोफाइटा -
                                    इसमें लाइकोपोडियम , इक्वीसीटम , जिलेडीनेला  आदि आते है | 

2 . गुरुपर्णी  टेरीडोफाइटा -
                                     कुछ टेरीडोफाइटा में बड़ी पर्ण पायी जाती है जिन्हे फ्रंड्स कहते है | मार्सिलिया , एडीएण्टम 

टेरीडोफाइटा में सामान्यतः द्वितीयक वृद्धि नहीं  पायी जाती है | परन्तु अपवाद -आइसोइटीज  ,लेपिडो डेंड्रॉन ,केलेमाइटिस में द्वितीयक वृद्धि पायी जाती है 

टेरीडोफाइटा में संवहन तंत्र -
=>टेरीडोफाइट में सर्वप्रथम  संवहन  तंत्र या रम्भ तंत्र का विकाश हुआ | 
=>अतः इसे प्रथम संवहनी या रम्भीय पादप कहते है | 
=>किसी भी पौधे में जायलम व फ्लोएम का निर्माण होना संवहनी भवन कहलाता है 
=>जायलम जल का संवहन करता है तथा फ्लोयम भोजन का संवहन करता है 
=>टेरीडोफाइट के जायलम में वाहिकाएं नहीं पायी जाती है तथा फ्लोयम में सह कोशिका नहीं पायी जाती है | 

टेरीडोफाइट में जनन -
1 . कायिक जनन -
                            टेरीडोफाइटा में कायिक जनन अपस्थानिक कलिकाओं ,शाखाओं व कंदों के द्वारा होता है | 

2 . लैंगिक व अलैंगिक जनन -
=>टेरीडोफाइटा में अलैंगिक जनन बीजाणुद बिद के द्वारा ,जबकि  लैंगिक जनन युग्मोदबिद के द्वारा होता है | 

=>अलैंगिक जनन के फलस्वरूप बीजाणु बनते है अतः ऐसे बीजाणु जनन भी कहा जाता है 

=>इन बीजाणु के निर्माण के आधार पर टेरीडोफाइटा दो प्रकार के होते है जो क्रमशः समबीजाणुदबिद टेरीडोफाइटा व विषम बीजाणुदबिद  टेरीडोफाइटा है 

=>अधिकांश टेरीडोफाइट समबीजाणुदबिद होते है जिनमें केवल एक ही प्रकार के बीजाणु का निर्माण होता है 

=>विषम बीजाणविक टेरीडोफाइट में दो प्रकार के बीजाणु बनते है जो क्रमशः लघुबीजाणु व गुरु बीजाणु है 

=>लघुबीजाणु छोटे आकर के होते है जबकि गुरु बीजाणु बड़े आकर के होते है | 

=>यह बीजाणु बीजाणुधानियों पर बनते है 
=>अगर सम बीजाणविक टेरीडोफाइट है तो केवल एक ही प्रकार की बीजाणु धानी बनती है 
=>जबकि विषम बीजाणविक टेरीडोफाइट हो तो  लघुबीजाणु धानी व गुरु बीजाणु धानी का निर्माण होता है
=>अधिकांश टेरीडोफाइट में बीजाणु धानियां पर्ण पर बनती है जिसे बीजाणु पर्ण कहते है 
=>सिलेजिनेला व लाइकोपोडियम में बीजाणु धानियां समूह में पायी जाती है जिसे सोरस या सोराई कहते है 

=>इन बीजाणु धानियों में उपस्थित मातृ कोशिका में अर्धसूत्री विभाजन होने से अगुणित बीजाणु का निर्माण होता है | 

=>जो अंकुरित होकर अगुणित थैलस का निर्माण करता है जिसे प्रोथेलस कहते है |  

=>प्रोथेलस लैंगिक जनन में भाग लेता है | 
=>प्रोथेलस में लैंगिक जनन अंगों का निर्माण होता है | प्रोथेलस में नर व मादा जनन अंगों का निर्माण होता है 

=>नर जनन अंग पुंधानी बनता है तथा मादा जनन अंग स्त्रिधानि बनती है | यदि पुंधानी व स्त्रिधानि का निर्माण एक ही प्रोथेलस में होता है | तो प्रोथेलस द्विलिंगासरी कहलाता है | 

=>यदि नर व मादा प्रोथेलस अलग -अलग हो तो यह एक लिंगासरी प्रोथेलस कहलाता है | 
=>जनन अंग बहुकोशिकीय होते है जो बंध्य जैकेट आवरण से ढके रहते है 
=>पुंधानि में चल व कशाभिक पुमणु का निर्माण होता है जबकि स्त्रिधानि में अण्ड कोशिका का परिवर्धन होता है 

=>पुंधानी के स्फुटन के पश्चात पुंनु जल में मुक्त होते है जो रासायनिक अनुचलन गति करते हुए स्त्रिधानि तक पहुंचते है 

=>नर व  मादा युग्मकों के संलयन की क्रिया को निषेचन कहते है जिसके फलस्वरूप द्विगुणित कोशिका युग्मनज का निर्माण होता है 

=>इस जायगोट से भ्रूण का निर्माण होता है जो द्विगुणित बीजाणुदबिद का निर्माण करता है 















































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