टेरीडोफाइटा -
=>टेरीडोफाइटा शब्द हैकल के द्वारा दिया गया |
=>ऐसे पादप जिनमें पंख युक्त पर्ण उपस्थित होती है टेरीडोफाइट कहलाते है |
सामान्य नाम -
=>अपुष्पीय संवहनीय पादप |
=>फर्न |
=>प्रथम संवहनी पादप या प्रथम रम्भीय पादप |
=>टेरिडोलोजी -वनस्पति विज्ञानं की वह शाखा जिसमें टेरीडोफाइटा का अध्यन किया जाता है
प्रमुख लक्षण -
=>टेरीडोफाइट स्थलीय पादप है जो मुख्य रूप से नम और छायादार आवाश में पाए जाते है |
=>परन्तु कुछ टेरीडोफाइटा जलीय जैसे -एजोला , मार्सिलिया साल्विनिया ,आदि |
=>इनका मुख्य पादप शरीर बीजाणुद बिद होता है |
=>जो जड़, तना , पत्तियों में विभक्त होता है यह सामान्यतः एक वर्षीय या बहुवर्षीय शाख , झाड़ी या कभी -कभी वृक्ष नुमा भी होते है
=>इनमे सामान्यतः अपस्थानिक मूल पायी जाती है जो जल व खनिज लवण के अवशोषण का कार्य करती है
=>पत्तियों के आधार पर टेरीडोफाइटा दो प्रकार के होते है
1 . लघुपर्णि टेरीडोफाइटा -
इसमें लाइकोपोडियम , इक्वीसीटम , जिलेडीनेला आदि आते है |
2 . गुरुपर्णी टेरीडोफाइटा -
कुछ टेरीडोफाइटा में बड़ी पर्ण पायी जाती है जिन्हे फ्रंड्स कहते है | मार्सिलिया , एडीएण्टम
टेरीडोफाइटा में सामान्यतः द्वितीयक वृद्धि नहीं पायी जाती है | परन्तु अपवाद -आइसोइटीज ,लेपिडो डेंड्रॉन ,केलेमाइटिस में द्वितीयक वृद्धि पायी जाती है
टेरीडोफाइटा में संवहन तंत्र -
=>टेरीडोफाइट में सर्वप्रथम संवहन तंत्र या रम्भ तंत्र का विकाश हुआ |
=>अतः इसे प्रथम संवहनी या रम्भीय पादप कहते है |
=>किसी भी पौधे में जायलम व फ्लोएम का निर्माण होना संवहनी भवन कहलाता है
=>जायलम जल का संवहन करता है तथा फ्लोयम भोजन का संवहन करता है
=>टेरीडोफाइट के जायलम में वाहिकाएं नहीं पायी जाती है तथा फ्लोयम में सह कोशिका नहीं पायी जाती है |
टेरीडोफाइट में जनन -
1 . कायिक जनन -
टेरीडोफाइटा में कायिक जनन अपस्थानिक कलिकाओं ,शाखाओं व कंदों के द्वारा होता है |
2 . लैंगिक व अलैंगिक जनन -
=>टेरीडोफाइटा में अलैंगिक जनन बीजाणुद बिद के द्वारा ,जबकि लैंगिक जनन युग्मोदबिद के द्वारा होता है |
=>अलैंगिक जनन के फलस्वरूप बीजाणु बनते है अतः ऐसे बीजाणु जनन भी कहा जाता है
=>इन बीजाणु के निर्माण के आधार पर टेरीडोफाइटा दो प्रकार के होते है जो क्रमशः समबीजाणुदबिद टेरीडोफाइटा व विषम बीजाणुदबिद टेरीडोफाइटा है
=>अधिकांश टेरीडोफाइट समबीजाणुदबिद होते है जिनमें केवल एक ही प्रकार के बीजाणु का निर्माण होता है
=>विषम बीजाणविक टेरीडोफाइट में दो प्रकार के बीजाणु बनते है जो क्रमशः लघुबीजाणु व गुरु बीजाणु है
=>लघुबीजाणु छोटे आकर के होते है जबकि गुरु बीजाणु बड़े आकर के होते है |
=>यह बीजाणु बीजाणुधानियों पर बनते है
=>अगर सम बीजाणविक टेरीडोफाइट है तो केवल एक ही प्रकार की बीजाणु धानी बनती है
=>जबकि विषम बीजाणविक टेरीडोफाइट हो तो लघुबीजाणु धानी व गुरु बीजाणु धानी का निर्माण होता है
=>अधिकांश टेरीडोफाइट में बीजाणु धानियां पर्ण पर बनती है जिसे बीजाणु पर्ण कहते है
=>सिलेजिनेला व लाइकोपोडियम में बीजाणु धानियां समूह में पायी जाती है जिसे सोरस या सोराई कहते है
=>इन बीजाणु धानियों में उपस्थित मातृ कोशिका में अर्धसूत्री विभाजन होने से अगुणित बीजाणु का निर्माण होता है |
=>जो अंकुरित होकर अगुणित थैलस का निर्माण करता है जिसे प्रोथेलस कहते है |
=>प्रोथेलस लैंगिक जनन में भाग लेता है |
=>प्रोथेलस में लैंगिक जनन अंगों का निर्माण होता है | प्रोथेलस में नर व मादा जनन अंगों का निर्माण होता है
=>नर जनन अंग पुंधानी बनता है तथा मादा जनन अंग स्त्रिधानि बनती है | यदि पुंधानी व स्त्रिधानि का निर्माण एक ही प्रोथेलस में होता है | तो प्रोथेलस द्विलिंगासरी कहलाता है |
=>यदि नर व मादा प्रोथेलस अलग -अलग हो तो यह एक लिंगासरी प्रोथेलस कहलाता है |
=>जनन अंग बहुकोशिकीय होते है जो बंध्य जैकेट आवरण से ढके रहते है
=>पुंधानि में चल व कशाभिक पुमणु का निर्माण होता है जबकि स्त्रिधानि में अण्ड कोशिका का परिवर्धन होता है
=>पुंधानी के स्फुटन के पश्चात पुंनु जल में मुक्त होते है जो रासायनिक अनुचलन गति करते हुए स्त्रिधानि तक पहुंचते है
=>नर व मादा युग्मकों के संलयन की क्रिया को निषेचन कहते है जिसके फलस्वरूप द्विगुणित कोशिका युग्मनज का निर्माण होता है
=>इस जायगोट से भ्रूण का निर्माण होता है जो द्विगुणित बीजाणुदबिद का निर्माण करता है
=>टेरीडोफाइटा शब्द हैकल के द्वारा दिया गया |
=>ऐसे पादप जिनमें पंख युक्त पर्ण उपस्थित होती है टेरीडोफाइट कहलाते है |
सामान्य नाम -
=>अपुष्पीय संवहनीय पादप |
=>फर्न |
=>प्रथम संवहनी पादप या प्रथम रम्भीय पादप |
=>टेरिडोलोजी -वनस्पति विज्ञानं की वह शाखा जिसमें टेरीडोफाइटा का अध्यन किया जाता है
प्रमुख लक्षण -
=>टेरीडोफाइट स्थलीय पादप है जो मुख्य रूप से नम और छायादार आवाश में पाए जाते है |
=>परन्तु कुछ टेरीडोफाइटा जलीय जैसे -एजोला , मार्सिलिया साल्विनिया ,आदि |
=>इनका मुख्य पादप शरीर बीजाणुद बिद होता है |
=>जो जड़, तना , पत्तियों में विभक्त होता है यह सामान्यतः एक वर्षीय या बहुवर्षीय शाख , झाड़ी या कभी -कभी वृक्ष नुमा भी होते है
=>इनमे सामान्यतः अपस्थानिक मूल पायी जाती है जो जल व खनिज लवण के अवशोषण का कार्य करती है
=>पत्तियों के आधार पर टेरीडोफाइटा दो प्रकार के होते है
1 . लघुपर्णि टेरीडोफाइटा -
इसमें लाइकोपोडियम , इक्वीसीटम , जिलेडीनेला आदि आते है |
2 . गुरुपर्णी टेरीडोफाइटा -
कुछ टेरीडोफाइटा में बड़ी पर्ण पायी जाती है जिन्हे फ्रंड्स कहते है | मार्सिलिया , एडीएण्टम
टेरीडोफाइटा में सामान्यतः द्वितीयक वृद्धि नहीं पायी जाती है | परन्तु अपवाद -आइसोइटीज ,लेपिडो डेंड्रॉन ,केलेमाइटिस में द्वितीयक वृद्धि पायी जाती है
टेरीडोफाइटा में संवहन तंत्र -
=>टेरीडोफाइट में सर्वप्रथम संवहन तंत्र या रम्भ तंत्र का विकाश हुआ |
=>अतः इसे प्रथम संवहनी या रम्भीय पादप कहते है |
=>किसी भी पौधे में जायलम व फ्लोएम का निर्माण होना संवहनी भवन कहलाता है
=>जायलम जल का संवहन करता है तथा फ्लोयम भोजन का संवहन करता है
=>टेरीडोफाइट के जायलम में वाहिकाएं नहीं पायी जाती है तथा फ्लोयम में सह कोशिका नहीं पायी जाती है |
टेरीडोफाइट में जनन -
1 . कायिक जनन -
टेरीडोफाइटा में कायिक जनन अपस्थानिक कलिकाओं ,शाखाओं व कंदों के द्वारा होता है |
2 . लैंगिक व अलैंगिक जनन -
=>टेरीडोफाइटा में अलैंगिक जनन बीजाणुद बिद के द्वारा ,जबकि लैंगिक जनन युग्मोदबिद के द्वारा होता है |
=>अलैंगिक जनन के फलस्वरूप बीजाणु बनते है अतः ऐसे बीजाणु जनन भी कहा जाता है
=>इन बीजाणु के निर्माण के आधार पर टेरीडोफाइटा दो प्रकार के होते है जो क्रमशः समबीजाणुदबिद टेरीडोफाइटा व विषम बीजाणुदबिद टेरीडोफाइटा है
=>अधिकांश टेरीडोफाइट समबीजाणुदबिद होते है जिनमें केवल एक ही प्रकार के बीजाणु का निर्माण होता है
=>विषम बीजाणविक टेरीडोफाइट में दो प्रकार के बीजाणु बनते है जो क्रमशः लघुबीजाणु व गुरु बीजाणु है
=>लघुबीजाणु छोटे आकर के होते है जबकि गुरु बीजाणु बड़े आकर के होते है |
=>यह बीजाणु बीजाणुधानियों पर बनते है
=>अगर सम बीजाणविक टेरीडोफाइट है तो केवल एक ही प्रकार की बीजाणु धानी बनती है
=>जबकि विषम बीजाणविक टेरीडोफाइट हो तो लघुबीजाणु धानी व गुरु बीजाणु धानी का निर्माण होता है
=>अधिकांश टेरीडोफाइट में बीजाणु धानियां पर्ण पर बनती है जिसे बीजाणु पर्ण कहते है
=>सिलेजिनेला व लाइकोपोडियम में बीजाणु धानियां समूह में पायी जाती है जिसे सोरस या सोराई कहते है
=>इन बीजाणु धानियों में उपस्थित मातृ कोशिका में अर्धसूत्री विभाजन होने से अगुणित बीजाणु का निर्माण होता है |
=>जो अंकुरित होकर अगुणित थैलस का निर्माण करता है जिसे प्रोथेलस कहते है |
=>प्रोथेलस लैंगिक जनन में भाग लेता है |
=>प्रोथेलस में लैंगिक जनन अंगों का निर्माण होता है | प्रोथेलस में नर व मादा जनन अंगों का निर्माण होता है
=>नर जनन अंग पुंधानी बनता है तथा मादा जनन अंग स्त्रिधानि बनती है | यदि पुंधानी व स्त्रिधानि का निर्माण एक ही प्रोथेलस में होता है | तो प्रोथेलस द्विलिंगासरी कहलाता है |
=>यदि नर व मादा प्रोथेलस अलग -अलग हो तो यह एक लिंगासरी प्रोथेलस कहलाता है |
=>जनन अंग बहुकोशिकीय होते है जो बंध्य जैकेट आवरण से ढके रहते है
=>पुंधानि में चल व कशाभिक पुमणु का निर्माण होता है जबकि स्त्रिधानि में अण्ड कोशिका का परिवर्धन होता है
=>पुंधानी के स्फुटन के पश्चात पुंनु जल में मुक्त होते है जो रासायनिक अनुचलन गति करते हुए स्त्रिधानि तक पहुंचते है
=>नर व मादा युग्मकों के संलयन की क्रिया को निषेचन कहते है जिसके फलस्वरूप द्विगुणित कोशिका युग्मनज का निर्माण होता है
=>इस जायगोट से भ्रूण का निर्माण होता है जो द्विगुणित बीजाणुदबिद का निर्माण करता है
1 टिप्पणियाँ
Mst h bhai
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